Raksha Bandhan Kahani 2020 -Full Story

Raksha Bandhan Kahani 


why raksha bandhan kahani very interesting-रक्षाबंधन कहानी  चित्रण

Raksha Bandhan ki kahani रक्षाबंधन की कहानी मैं बहुत दिलचस्प बातें सुनने और दृश्य देखने को मिलता हैं।
रक्षाबंधन का उल्लेख हमारी रीति काल व महाभारत से मिलता है 
और इससे मिलते जुलते ऐतिहासिक व साहित्य महत्त्व भी बहुत उल्लेखनीय है

Shri Krishna Shishupal Vadh Kahani In Hindi

एक बार की बात है 
                           श्री कृष्ण जब शिशुपाल का वध किए। तो चक्र से उनकी अंगुली कट गई थी। और यह द्रोपति से देखा नहीं गया। 
वह अपनी साड़ी का किनारा फाड़ते हुए उन्होंने श्री कृष्ण की चोट पर कपड़ा बांध दिया।
 तब श्रीकृष्ण ने नहीं कहा कि तुम्हारी साड़ी का ऋण एक दिन जरूर अदा करूंगा।
                    
raksha bandhan kahani ऐसी बहुत सी गाथाएं देखी गई है और सुनी भी गई है 
श्री कृष्ण ने द्रोपती से कहा कि तुम्हारी साड़ी का ऋण  मैं एक दिन जरूर अदा करूंगा।

Raksha Bandhan Kahani 

एक और गाथा जोकि महाभारत से सम्मिलित है जिसमें श्री कृष्ण ने द्रोपती के साड़ी के ऋण को अदा करते हैं ।
उनकी लाज बचाते हैं जैसा कि एक भाई अपनी बहन की लाज बचाता है रक्षा करता है
 यह कहानी पढ़कर आपको बहुत ही अच्छा लगेगा एक बार पढ़ कर तो देखो दोस्तों।

Dropati Chir Haran Kahani In Hindi

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Raksha bandhan kahani एक और कहानी जिसमें श्री कृष्ण और द्रोपती महाभारत से मिलती है

एक बार की बात है जब

                               शकुनि ने गद्दी छीलने के लिए चौसड़ का खेल सजाया। युधिष्ठिर को चौसड़ का खेल प्रिय था। फिर भी वह जीत से नहीं पाते।

 सभी को लगा कि कौरवों की तरफ से जाल बिछाया गया है।युधिष्ठिर नहीं माने और उन्होंने सौदा स्वीकार कर लिया ।

युधिष्ठिर अपनी सत्ता के साथ भाइयों को भी हार गए थे। जब एक आखरी दाओ बचा तब उन्होंने जीत के लालच में द्रौपदी को दांव पर लगा दिया।

 खेल में कर्म की जीत हुई खेल के बाद युधिष्ठिर अपने अपमान का बदला लेने के लिए दुशासन से कहा
 कि द्रोपती को बालों समेत खींचते हुए यहां ले आओ।

दुशासन ने द्रौपदी के साथ जंगली ऐसा व्यवहार किया भरी सभा में उसने द्रोपति की साड़ी उतारनी शुरु की।

 उसी वक्त सभा में भीष्मा पितामह द्रोणाचार्य और धृतराष्ट्र सभी मौजूद थे। लेकिन किसी ने यह पाप होते हुए नहीं रोका।

द्रौपदी ने अपनी लाज की रक्षा के लिए भगवान श्री कृष्ण को याद किया। दुशासन ( कपड़े ) चीर खींचते-खींचते थक गया।

लेकिन श्री कृष्ण की कृपा से शाड़ी की लंबाई कम नहीं पड़ी। भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी की लाज वैसे ही बचाई जैसा।

 कि कोई भी भाई अपनी बहन की लाज बचाता है

Raksha Bandhan Kahani 


Rani Karnavati And Humayun Kahani In Hindi / रानी कर्णावती मेवाड़ की रानी थी। वे चित्तौड़ के राजा महाराणा सांगा की विधवा थीं।

 रानी के दो पुत्र थे- राणा उदयसिंह और राणा विक्रमादित्य। एक ओर जहां मुगल सम्राट हुमायूं अपने राज्य का विस्तार करने में लगा था

 तो दूसरी ओर गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने 1533 ईस्वी में चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया था।
विक्रमादित्य ने अपनी सेना में सात हजार पहलवान भर्ती किये। इन्हें जानवरों की लड़ाई, कुश्ती, आखेट और आमोद प्रमोद ही प्रिय था। 
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इन्हीं कारणों व इनके व्यवहार से मेवाड़ के सामंत खुश नहीं थे। और वे इन्हें छोड़कर बादशाह बहादुरशाह के पास व अन्यत्र चले गए।

इसी का फायदा उठाकर गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चितौड़ के नाराज सामंतो के कहने पर चितौड़ पर हमला किया।
 हालाँकि विक्रमादित्य ने बहादुरशाह से संधि करने के प्रयास किये पर विफल रहा। 

मेवाड़ की महारानी कर्मावती ने राजा हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा प्रार्थना की थी राजा हुमायूं ने मुस्लिम होते हुए भी राखी की लाज रखी।

हुमायूं ने राजमाता की राखी का मान रखा, राखी मिलते ही उसने ढेरों उपहार भी भेजें, और आश्वस्त किया कि वह सहायता के लिए आएगा।

 जब चित्तौड़ पर आक्रमण हुआ उस वक्त हुमायूं ग्वालियर किले पर सपरिवार ठहरा हुआ था। 

उसने वहां से आगरा और दिल्ली हरकारा भेज कर फौजें जुटाने का आदेश दिया,
 लेकिन जब तक वह फौजों को लेकर चित्तौड़ पहुंचा, वहां देर हो चुकी थी।
 राजमाता कर्णावती महल की सभी स्त्रियों समेत जौहर कर चुकी थीं।
 हालांकि जौहर के पहले उन्होंने धाय पन्ना के हाथों टे राजकुमार उदय सिंह को बूंदी किले में सुरक्षित भेज दिया था।

 इसके बाद बहादुरशाह हुमायूं से युद्ध के लिए गया और मंदसौर के पास मुगल सेना से हुए युद्ध में हार गया। उसकी हार की खबर सुनते ही 

चित्तौड़ के राजपूत सैनिकों ने चितौड़ पर हमला कर बहादुरशाह के सैनिकों को भगा दिया, 
और राजकुमार उदय सिंह को बूंदी से लाकर दोबारा महराणा बना दिया।
हुमायूं भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के रिश्ते का महत्त्व तब से जानता था,
 जब वह बुरे वक्त में अमरकोट के राजपूत शासक वीरशाल के यहां शरणागत था।

 राणा वीरशाल की पटरानी हुमायूं के प्रति अपने सहोदर भाई का भाव रखती थी व भाई तुल्य ही आदर करती थी। 
हुमायूं के पुत्र अकबर का जन्म भी अमरकोट में शरणागत रहते हुए हुआ था।
 इसलिए उसने कोशिश की कि कर्णावती की राखी का मान हर हाल में रखा जाए।

Raksha Bandhan Status के लिए यहां पर टच करें  Click here

Conclusion ( उपसंहार )

                                              Hello दोस्तों मैंने आपको रक्षाबंधन से सम्मिलित ऐतिहासिक और महाभारत से उल्लेखनीय
raksha bandhan kahani को विस्तारपूर्वक अच्छे से समझाया गयाा है।
 और उसके बारे में अपने इस blog पेज बताया गया है आप सभी इस कहानी को अच्छे से 
इत्मीनान पूर्वक पढ़ें यह कहानी आपको पढ़ कर बहुत ही अच्छा लगेगा 
क्योंकि मैं जब इस कहानी को लिख रहा था । तो मुझे खुद ही बहुत अच्छा लगा यह पढ़कर।

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